Tuesday, January 29, 2013

यदि मैं


यदि मैं
यदि मैं मानसरोवर को तैर जाऊं,
यदि मैं एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ जाऊं,
यदि मैं थार रेगिस्तान को आर पार दौड़ जाऊं,
यदि मैं डब्ल्यु-डब्ल्यु-एफ की अगली कुश्ती जीत जाऊं,
यदि मैं हिन्द महासागर के गोते लगा जाऊं,
यदि मैं कश्मीर से कन्याकुमारी नाचता चला जाऊं,
यदि मैं ब्रह्मपुत्र और गंगा का सारा पानी पी जाऊं,
यदि मैं चित्रकूट के झरनों को मोड़ जाऊं,
यदि मैं पूर्णिमा की चंद्रमा का रंग बदल जाऊं,
और तो और सारी धरती आकाश एक कर जाऊं,
क्या तब ही तुम मेरे प्यार को समझ पाओगी?
क्या तब ही तुम मेरे प्यार को सुन पाओगी?
क्या तब ही तुम मेरे प्यार को महसूस कर पाओगी?
-विजय कुमार रात्रे

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