Tuesday, January 29, 2013

बहुत दूर चला आया हूँ...


बहुत दूर चला आया हूँ

अब मेरा दिल नहीं धड़कता तुम्हारे लिए,
जैसा कि यह किया करता था बिना किसी छोर या सीमा के,
मेरी भावनाओं-कल्पनाओं को अब तुम्हारा हृदय पार नहीं पा सकता,
जैसा कि मैं सोचा करता था, कि तुम इस पर गोते लगाती हो।
मेरा तन और मन अब नहीं तड़पता तुम्हारे लिए,
जैसा कि यह मचला करता था, बेचैनी से लथपथ हर क्षण।
तुम मुझसे बहुत दूर हो चुकी हो, बढ़ चली हो अनंत रास्तों पर,
और अब किसी तरह तुम्हारे बगैर मैने जीना सीख लिया है,
तोड़ना सीख लिया है समाज की ऊंची दीवारों को,
लांघना जान गया हूँ धर्म और जाति के बंधनों को।
तुम्हारी दूरी ने मुझे सीखा दिया है मजबूत रहना,
हर उस तुफान के सामने, हर उस दर्द को सहने,
और बहुत दूर चला आया हूँ, इतना दूर के वापस आ नहीं सकता,
या यूं कहूँ कि वापस आकर भी तुम्हें पा नहीं सकता...
-विजय कुमार रात्रे

No comments:

Post a Comment