Tuesday, January 29, 2013

तुम मुझे टोक जाती हो...


तुम मुझे टोक जाती हो

अपनी टेबल पर बैठा जब कभी चाय की चुस्कीयों के साथ,
बहुत ही उदास, हैरान या परेशान होता हूँ मैं,
दिनभर की थकान से निढाल सा, गुमसुम होता हूँ,
तुम अनायास ही आती हो और मुझे टोक जाती हो

सोचाता हूँ इतने अत्याचारों के बाद,
तुम मुझे तो भूल ही चुकी होगी,
पर जब-जब तुम्हें मैं याद करता हूँ,
अचानक ही छा जाती हो मेरे पटल पर, और तुम मुझे टोक जाती हो

तुम्हारी वह मंद सी मुस्कान, गंभीर गहरी आंखें,
तुम्हारे कोमल हाथ, किसी न किसी तरह मुझे रोक देते हैं,
मेरे दिन में और मेरी रात में, और तुम मुझे टोक जाती हो

सुबह के अखबार में मुझे दिखते हैं, तुम्हारे गीले होंठ,
पन्नों के भीतर उन नामों में पढ़ता हूँ मैं तुम्हारा ही नाम,
और सोचता हूँ कि काश इन पन्नों के किसी कोने में छुपा होता,
तुम्हारा पता तुम्हारा नंबर, तुम्हारी तस्वीर कंही छपी हो,
यूं हीं मेरी पलकों पर छा जाती हो, और तुम मुझे टोक देती हो
-विजय कुमार रात्रे

No comments:

Post a Comment