Friday, July 21, 2017

कहानी: पारो आफ्टर द ब्रेक | रश्मि बड़थ्वाल | Tehelka Hindi

कहानी: पारो आफ्टर द ब्रेक | रश्मि बड़थ्वाल | Tehelka Hindi: उसने कभी शरतचंद्र का लिखा कुछ भी नहीं पढ़ा था. उसने देवदास फिल्म भी नहीं देखी थी. उसके पति ने जरूर देवदास देखी थी और उसे पारो कहना शुरू कर दिया था. पारो के लिए पारो शब्द भी वैसा ही था जैसा कि रोपा होता या कोई भी दूसरा अनजाना [...]

कुछ समाज ने मारा, बाकी संरक्षण ने | शालिनी माथुर | Tehelka Hindi

कुछ समाज ने मारा, बाकी संरक्षण ने | शालिनी माथुर | Tehelka Hindi: देश के नारी निकेतनों में रखी गईं निरपराध किशोरियों के यहां आने की कहानी जितनी त्रासद है उतनी ही यहां रहने की भी

शादी या बलात्कार का अधिकार | रमेश रामचंद्रन | Tehelka Hindi

शादी या बलात्कार का अधिकार | रमेश रामचंद्रन | Tehelka Hindi: आश्रय संबंधी सामान्य नियमों के अनुसार, कहा गया है कि विवाह के साथ ही स्त्री, अपने पति को यह अधिकार दे देती है कि वो जब चाहे अपनी इच्छानुसार उससे शारीरिक संबंध बना सकता है और इस नियम में किसी भी प्रकार का बदलाव नहीं हो सकता. हालांकि कनाडा, दक्षिण [...]

सेक्स प्रेम की अभिव्यक्ति हो हिंसा की नहीं | शालिनी माथुर | Tehelka Hindi

सेक्स प्रेम की अभिव्यक्ति हो हिंसा की नहीं | शालिनी माथुर | Tehelka Hindi: पति-पत्नी के बीच प्यार, शत्रुता, उदासीनता अादि के बारे में कानून मौन रहता है. ऐसे में इच्छा-अनिच्छा और सहमति-असहमति का प्रश्न जटिल हो जाता है

कामरेड, मैं तुम से प्यार करती हूं | निशांत | Tehelka Hindi

कामरेड, मैं तुम से प्यार करती हूं | निशांत | Tehelka Hindi: कविता

‘यह सामाजिक सरोकार एक साहित्यिक व्यभिचार है’ | जयश्री रॉय | Tehelka Hindi

‘यह सामाजिक सरोकार एक साहित्यिक व्यभिचार है’ | जयश्री रॉय | Tehelka Hindi: तहलका के संस्कृति विशेषांक में प्रकाशित शालिनी माथुर के स्त्री लेखन संबंधी आलोचनात्मक लेख ‘मर्दों के खेला में औरत का नाच’ पर कथाकार जयश्री रॉय की टिप्पणी.

मर्दों के खेला में औरत का नाच | शालिनी माथुर | Tehelka Hindi

मर्दों के खेला में औरत का नाच | शालिनी माथुर | Tehelka Hindi: सितंबर, 2008 में अपने एक लेख ‘नवरीतिकालीन संपादक और उनके चीयर लीडर्स’ में मैंने हंस संप्रदाय के तत्वावधान में पोर्नोग्राफी को साहित्य बताने तथा हर स्त्री को सेक्स वर्कर साबित करने के प्रयासों की कड़ी भर्त्सना की थी. उसी समय मैंने यह लेख भी लिखना शुरू किया था. लेकिन रचनाओं में से अंश उद्धृत करते समय लगा कि इन पर टिप्पणी करना बस अड्डों पर बिकने वाली पीले पन्नों वाली किताबों में छपी अपराधों की अमानवीय घटनाओं पर टिप्पणी करने जैसा होगा. लेख अधूरा पड़ा रहा. आज पांच वर्ष बाद स्थिति बेहतर न होकर बदतर ही हुई है. मेरे लिए अब और चुप रह पाना मुमकिन नहीं. यही समझ लें कि यह लेख साहित्यिक नहीं सामाजिक सरोकारों के कारण लिखा गया है.

‘साहित्य में तुम मेरी पीठ खुजाओ, मैं तुम्हारी खुजाता हूं… बेहद आम बात हैै’ | विकास कुमार | Tehelka Hindi

‘साहित्य में तुम मेरी पीठ खुजाओ, मैं तुम्हारी खुजाता हूं… बेहद आम बात हैै’ | विकास कुमार | Tehelka Hindi: हिंदी अपराध लेखन में शीर्ष लेखकों में शुमार सुरेंद्र मोहन पाठक का मानना है कि लोकप्रिय साहित्य का पाठक अपने लेखक की हैसियत बनाता है, खालिस साहित्यकार इस हैसियत से वंचित हैं. विकास कुमार की उनसे खास बातचीत

लुगदी, घासलेट, अश्लील, मुख्यधारा… साहित्य के स्टेशन | अनिल यादव | Tehelka Hindi

लुगदी, घासलेट, अश्लील, मुख्यधारा… साहित्य के स्टेशन | अनिल यादव | Tehelka Hindi: मिलिट्री डेयरी फार्म, सूबेदारगंज, इलाहाबाद. लौकी की लतरों से ढके एस्बेस्टस शीट की ढलानदार छतों वाले उन एक जैसे स्लेटी, काई से भूरे मकानों का शायद कोई अलग नंबर नहीं था. हर ओर ऊंची पारा और लैंटाना घास थी. कंटीले तारों से घिरे खेत थे जिनके आगे बैरहना का जंगल [...]

तन-बदन सुलगाने वाले उपन्यास | राजीव मिश्र | Tehelka Hindi

तन-बदन सुलगाने वाले उपन्यास | राजीव मिश्र | Tehelka Hindi: जवान हो रहा था. स्कूलिया साहित्य से मन ऊब सा गया था. सुभद्रा कुमारी चौहान के वीर रस की कविताओं का रस भी सूख सा गया था. तब इन्हीं उपन्यासों ने मुझे बचाया था

लुगदी या लोकप्रिय : मुख्यधारा के मुहाने पर | स्वतंत्र मिश्र | Tehelka Hindi

लुगदी या लोकप्रिय : मुख्यधारा के मुहाने पर | स्वतंत्र मिश्र | Tehelka Hindi: लुगदी कहकर जिस साहित्य को अब तक खारिज किया जाता रहा, उसे मुख्यधारा में तवज्जो मिलने लगी है