Friday, September 27, 2013

मुझे फिर से अपनी गोद में सोने दो माँ

मुझे फिर से अपनी गोद में सोने दो माँ

मुझे फिर से अपनी गोद में सोने दो माँ,
मुझे अपनी धरती से चौड़े आँचल में,
मुझे आराम करने दो, और लेने दो ठंडी सांसें,
मुझे देखने दो एक मीठा सपना,
मुझे बेहोशी में बस यूं ही लेटे रहने दो,
मुझे अपने प्राण-जल पिलाकर चंगा करो माँ,
मुझे सारी चिंता और तनाव से छुटकारा दो,
मुझे मेरे दर्द से दूर ले चलो,
मुझे फिर से प्यार करने दो माँ,
मुझे मेरी हंसी फिर से दो माँ,
मुझे इस थके हुए दिल को राहत देने दो माँ,
मुझे इस भूलभुलैया में खोजने दो अपना रास्ता,
मुझे जीवन के चौराहों मे खोजने अपना मोड़,
मुझे इस पिंजरे से रिहा कर दो माँ
मुझे अनुदान दो मृत्यु के बाद पुनर्जन्म का,
मुझे मेरे सपनों को पूरा देखने दो,
मुझे जीने दो मेरा आसमान और मेरी जमीं,
मुझे बस अपने आँचल का सहारा दे दो माँ,
कम से कम इस जन्म में नहीं, तो अगले जन्म में,
मुझे अपने दुखों के बीच एक खुशी खोजने दो माँ,
मुझे फिर से अपनी गोद में सोने दो माँ।
              - विजय कुमार रात्रे (27 सितंबर, 2013)

Friday, September 6, 2013

विश्वास करने के लिए कोर्इ विश्वास नहीं

विश्वास करने के लिए कोर्इ विश्वास नहीं

मैं जानती हूँ कि तुम मेरी यादों में बसे रहोगे हमेशा के लिए,
चाहे वह कड़वी हों या मीठी, अब इसका कोर्इ मतलब नहीं,
मैं जानती हूँ कि मैं तुम्हे अक्सर भूलने कोशिशें भी करती हूँ,
पर शायद मैं ऐसा कभी कर भी नहीं पाऊं।

मैं जानती हूँ मेरा हृदय इतना विशाल नहीं कि तुम्हें मैं माफ कर सकूं,
पर हमारे रिश्तों की यादें इतनी भी कमजोर नहीं होंगी कि तुम्हे भूल जाऊं,
मैं जानती हूँ कि तुम अपने आप को सजा देते हो मुझे सताने के लिए,
तुम सीख ले रहे हो मुझे सीख देने के लिए,
मैं जानती हूँ कि मेरा तुम्हे प्यार करना दूसरों को स्वीकार्य नहीं था,
लेकिन मैं यह भी जानती हूँ कि वह बिल्कुल पवित्र और सच्चा था।

मैं जानती हूँ तुम्हारी मंशा इसमें सही नहीं थी,
और तुम्हारे वे ऊसूल किसी को जीवन भर का दु:ख देने के लिए काफी थे।
मैं जानती हूँ कि तुम्हारी उस सोच ने मुझे जि़दगी भर के लिए निराश कर दिया।
मैं जानती हूँ कि तुमने ही मेरे हृदय की सच्चार्इयों का गला घोंटा है,
कि मैं अब किसी और का कभी भरोसा नहीं कर सकती।
मैं जानती हूँ कि इससे और बड़ी कोर्इ विडम्बना हो ही नहीं सकती,
कि कोर्इ अपने दोस्ती और प्यार की यूं बली चढ़ा दे।

मैं जानती हूँ कि तुमने और मैंने जिस प्यार और दोस्ती को खो दिया है,
वह तुम्हें और मुझे जीवन में अब कभी भी वापस नहीं मिल पाएगा।
मैं बिल्कुल जानती हूँ कि तुमने मेरा दिल तोड़ा और मेरी हंसी को छीन लिया।
मैं जानती हूँ कि मैं बहुत रोयी हूँ, ऐसा इससे पहले कभी भी नहीं
लेकिन इससे किसी को कोर्इ मतलब नहीं है।
मैं जानती हूँ कि हमने दीवारें लांघी थी, खार्इ थी कसमें एक साथ,
लेकिन ऐसा कोर्इ भी नहीं था, ऐसा कुछ भी नहीं था,
मैं जानती हूँ कि मैंने तुम्हें पूरी तरह समझा था,
पर, शायद तुम्हारी अपेक्षाओं के अनुसार नहीं।

मैं जानती हूँ कि सच्ची भावनाओं को किसी भी भाषा की जरूरत नहीं होती,
लेकिन, मैं तुम्हारे लिए अब कभी नहीं रूकूंगी, बढ़ चलंूगी,
नहीं बहाउंगी आंसू तुम्हारे विश्वासघात और धोखे पर।
मैं जानती हूँ कि इंसान को दोस्ती और प्यार में विश्वास नहीं करना चाहिए,
और न ही मेरे पास विश्वास करने के लिए अब कोर्इ विश्वास ही बचा है,
मैं जानती हूँ कि ऐसी कोर्इ भी चीज़ इस दुनियां में नहीं है।
- विजय कुमार रात्रे (06 सितंबर, 2013)

आँचल तुम्हारा ओ माँ आशीष देता सदा से


Wednesday, September 4, 2013

एक दूसरे को

एक दूसरे को

काश! ऐसा होता कि हम दोनों बन जाते
एक दूसरे की आँख की पुतली,
और देखते रहते एक दूसरे को,
एक दूसरे की नज़रों से,
और थम जाती सारी धरती,
और बस हम निहारते रहते, एक दूसरे को....

काश! ऐसा होता कि हम बन जाते
एक दूसरे की आवाज़,
और पुकारते रहते एक दूसरे को
एक दूसरे के नामों से,
और गूंजता सारा आकाश हमारे शोर से,
और हम यूं ही देते रहते आवाज, एक दूसरे को...

काश! ऐसा होता कि हम दोनों बन जाते
एक दूसरे के दिलों की धड़कन,
और धड़कते रहते दिलों में एक दूसरे के
एक दूसरे के सीने में उम्र भर,
और चलती रहती तुम्हारी-मेरी सांसें,
और हम यूं ही देते रहते जीवन, एक दूसरे को...

काश! ऐसा होता कि हम दोनों बन जाते
एक दूसरे के लिए प्रेम का मंदिर,
और पूजते रहते उनमें एक दूसरे की मूर्तियां,
करते रहते हवन एक दूसरे के लिए,
और गाते रहते प्रेम का टीका-रामायण,
लिखते और सुनाते रहते अपना प्रेमग्रन्थ, एक दूसरे को...
- विजय कुमार रात्रे (04 सितंबर, 2013)