Wednesday, September 4, 2013

एक दूसरे को

एक दूसरे को

काश! ऐसा होता कि हम दोनों बन जाते
एक दूसरे की आँख की पुतली,
और देखते रहते एक दूसरे को,
एक दूसरे की नज़रों से,
और थम जाती सारी धरती,
और बस हम निहारते रहते, एक दूसरे को....

काश! ऐसा होता कि हम बन जाते
एक दूसरे की आवाज़,
और पुकारते रहते एक दूसरे को
एक दूसरे के नामों से,
और गूंजता सारा आकाश हमारे शोर से,
और हम यूं ही देते रहते आवाज, एक दूसरे को...

काश! ऐसा होता कि हम दोनों बन जाते
एक दूसरे के दिलों की धड़कन,
और धड़कते रहते दिलों में एक दूसरे के
एक दूसरे के सीने में उम्र भर,
और चलती रहती तुम्हारी-मेरी सांसें,
और हम यूं ही देते रहते जीवन, एक दूसरे को...

काश! ऐसा होता कि हम दोनों बन जाते
एक दूसरे के लिए प्रेम का मंदिर,
और पूजते रहते उनमें एक दूसरे की मूर्तियां,
करते रहते हवन एक दूसरे के लिए,
और गाते रहते प्रेम का टीका-रामायण,
लिखते और सुनाते रहते अपना प्रेमग्रन्थ, एक दूसरे को...
- विजय कुमार रात्रे (04 सितंबर, 2013)

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